"प्लास्टिक"-पृथ्वी पर फैलता ज़हर

                 "प्लास्टिक" - पृथ्वी पर फैलता ज़हर


                                  हिन्दू पौराणिक कथाओं मे हमने भस्मासुर नाम के राक्षस को पढ़ा होगा जिसे वरदान था कि वह किसी के भी सर पर हाथ रखकर उसे भस्म कर सकता है और उसके इसी वरदान ने पूरे देवलोक मे भय का माहौल बना दिया था।
आज प्लास्टिक भी उसी भस्मासुर की तरह है जिसे हमने अपने अविष्कार से खोज तो निकाला लेकिन वही आज इंसानी दुनिया के सामने एक चुनौती की तरह खड़ी हो गयी।
1907 मे जब पहली बार प्रयोगशाला में कृत्रिम "प्लास्टिक" की खोज हुई तो इसके आविष्कारक लियो बकलैंड ने कहा था, "अगर मैं गलत नहीं हूं तो मेरा ये अविष्कार एक नए भविष्य की रचना करेगा", जिसे उस समय की प्रसिद्ध टाइम पत्रिका ने अपने मुख्य पृष्ठ पर लियो बकलैंड की तस्वीर के साथ छापा जिसके नीचे लिखा था, "ये ना जलेगा और ना पिघलेगा।"
बस इन्ही शब्दो से प्लास्टिक के युग की शूरूआत होती है व इसका बढ़ता इस्तेमाल एक क्रांति मे बदल जाता व 80 के दशक तक पहुचते पहुचते यही प्लास्टिक कपड़ों के थैले,जूट से बने बैग,कागज़ के छोटे बड़े लिफाफों को खत्म करती चली गयी।
रसोईघर से लेकर बेडरूम-ड्रांइग रुम और वाशरूम तक इस प्लास्टिक ने अपनी पकड़ को मज़बूत किया और घरेलू उत्पाद के साथ साथ होटल,अस्पताल,स्कूल, सरकारी या गैर सरकारी विभाग मे यही प्लास्टिक एक ज़रुरत बन गयी जो हमारी दिनचर्या में इस तरह से शामिल हुई कि सुबह की शुरुआत ही प्लास्टिक के टूथ ब्रश से होती है और जिस बाल्टी या टब से हम नहाते है वह भी प्लास्टिक की होती है व नाश्ते से होते हुए दिन के खाने से लेकर रात के भोजन तक मे यही प्लास्टिक किसी ना किसी रूप मे हमारे उपयोग मे रहती है।
इसके इसी बेहिसाब इस्तेमाल पर यूरोप की मशहूर लेखिका सुजैन फ्रीनकेल ने "प्लास्टिक अ टॉक्सिक लव स्टोरी" अर्थात् प्लास्टिक एक जहरीली प्रेम कथा, नाम से एक किताब लिखी जिसमे उन्होने यह बताने की कोशिश की है कि किस तरह प्लास्टिक इंसानी जीवन का हिस्सा बन चुकी है। किताब में उन्होंने अपने एक दिन की दिनचर्या के बारे में लिखा है कि वे 24 घंटे में ऐसी कितनी चीजों के संपर्क में आईं जो प्लास्टिक की बनी हुई थीं। इनमे लाइट के स्विच,टूथब्रश,टूथपेस्ट,ट्यूब,खाने के बर्तन, पैन,बैग,टॉयलेट सीट जैसी 196 चीज़े इस्तेमाल मे आयीं जो प्लास्टिक से बनी थीं,जबकि गैर प्लास्टिक चीजों की संख्या 102 थी।
इशारा साफ था कि हम अब इसके पूरी तरह से आदि हो चुके है,और इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सिर्फ हमारे देश मे ही इसकी खपत आज सालाना 1 करोड़ 50 लाख टन के लगभग हो गई है जिसमे सिंघल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल सर्वाधिक है,
सिंगल-यूज प्लास्टिक वो हे जिसे हम अपनी दैनिक दिनचर्या मे एक बार के इस्‍तेमाल के बाद फेंक देते हैं।
जैसे प्लास्टिक की पन्नियां,बोतलें,स्ट्रॉ,कप,पाउच, प्लेट्स,फूड पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक, गिफ्ट रैपर्स,कॉफी के कप्स आदि और भी बहुत से डिस्पोज़ल शामिल है जो सिंघल यूज़ का हिस्सा है जबकि आज तो फास्ट फूड का दौर है लोग रास्ते में चलते ही खाना पसंद कर रहे हैं और यह खाना भी उन्हें प्लास्टिक की थेलियों में ही दिया जाता है।
एक रिपोर्ट के आधार पर हर साल 300 मिलियन टन प्‍लास्टिक प्रोड्यूस होता है, इसमें से 150 मिलियन टन प्‍लास्टिक सिंगल-यूज होता है,यानी प्‍लास्टिक के ऐसे उत्पाद जो हम एक बार इस्‍तेमाल करके फेंक देते हैं,वही दुनियाभर में सिर्फ 10 से 13 फीसदी प्‍लास्टिक रिसाइक्लिंग हो पाता है। अभी हाल ही मे भारत सरकार ने भी देशवासियों से सिंगल यूज़ प्लास्टिक यानी एक बार प्रयोग किए जाने वाले प्लास्टिक का उपयोग बन्द करने का आह्वान किया, जबकि इससे पहले भी 2018 मे विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ”बीट प्लास्टिक पॉल्युशन” की मेजबानी करते हुए भारत ने विश्व समुदाय से सिंगल यूज़ प्लास्टिक से मुक्त होने की अपील की थी लेकिन भारत मे ही इस पर लगाम लगने की बजाय खपत और बढ़ी खासकर डिस्पोज़ल उत्पादों की जो इंसानी जीवन और पर्यावरण को नष्ट करने के लिए पूरी दुनिया के सामने खतरे के निशान से उपर जैसा था क्योकिं इसके बेहिसाब उत्पादन के चलते पूरी पृथ्वी प्लास्टिक प्लानेट बनती जा रही है जिसके गंभीर परिणाम, मनुष्य के जीवन के साथ साथ,जल,मृदा,वायु व समुद्री जीव जंतुओं पर भी दिख रहे है।
मानव द्वारा प्लास्टिक का उपयोग अपनी सुविधाओ के आधार पर हुआ जिसके दो पक्ष है, एक वह जिसने प्लास्टिक के सस्ते,आसान व मज़बूत उत्पादों को अपनी जरूरतों मे शामिल किया तथा दूसरा पक्ष वह जो इसके हानिकारक दुष्प्रभावो से फैलने वाले प्रदुषण से था क्योंकि प्लास्टिक नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल होता है यानी ऐसे पदार्थ जो बैक्टीरिया के द्वारा ऐसी अवस्था में नहीं पहुंच पाते जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान ना हो हालाकि इस प्लास्टिक को रिसाइक्लिंग कर उपयोग मे तो लाया जा सकता है पंरतु नष्ट नही किया जा सकता और जिसे जलाने पर अधिक मात्रा मे हानिकारक विषैले रसायन निकलते है, वहीं इस प्लास्टिक को अगर मिट्टी मे गाढ़ भी दिया जाये तो यह विघटित नही हो पाता है और जहरीली गैसे और प्रदार्थ छोड़ता रहता है जिसके कारण वहां की भूमि बंजर हो जाती है तथा जैसे तैसे कोई फसल पैदा भी होती है तो उसमें जहरीले पदार्थ मिले होने के कारण यह मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रहती है और यही प्लास्टिक जब कचरे के रूप मे नदी,नालो,समुद्र मे फेकी जाती है तो यह बहुत समय बाद अलग अलग कणों मे टूट कर बिखर जाते है जो जायलेन,इथिलेन आक्साइड और बेंजेन जैसे ज़हरीले रसायनों के बने होने के कारण भारी संख्या मे समुद्री जीव जंतुओं के मरने की वजह भी बन रहे हे इनको खाकर। यानी इसका हर रुप मानव जाति से लेकर जीव जंतुओं व पर्यावरण के लिए बेहद घातक है, जहा तक इसकी रिसायकलिंग करने में भी 80% अधिक उर्जा व्यय होती है साथ ही विषैले रसायनों की उत्पत्ति भी।
अमेरिका की स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 2018 मे भारत के अलावा चीन,अमेरिका,ब्राज़ील,इंडोनेशिया केन्या,लेबनान,मेक्सिको और थाईलैंड में बेची जा रही 11 ब्रांडों की 250 बोतलों का सघन परीक्षण किया जिसमे बोतलबंद पानी के 90% नमूनों में प्लास्टिक के अवशेष पाए गए जो सभी ब्रांडों के एक लीटर पानी में औसतन 325 प्लास्टिक के कण मिले जो गंभीर बीमारियो और प्रदूषण को जन्म देते है।
हर एक मिनट मे विश्व भर में लगभग दस लाख पेयजल के लिए प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं जो एक बार के इस्तेमाल मे आकर कचरे के रुप मे फेक दी जाती है और इस प्लास्टिक की बोतल के बढ़ते इस्तेमाल मे इसके ज़हर का अनुपात सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमे भरे जाने वाले पानी मे भी इसके कण शामिल हो जाते हो जो उसके सेवन के बाद मानव के शरीर मे पहुचकर कई बीमारियां पैदा करते है, लेकिन इस पर अंकुश लगने की बजाय यह कारोबार और फैलता जा रहा है यानी कल तक जो इस्तेमाल पीने के पानी की बोतल के रुप मे था पर आज चिकित्सा मे भी इसका खासा इस्तेमाल देखने को मिलता है सीरप,टानिक जेसी दवाइयों की बोतल के रुप मे आकर, हालाकि इसकी एक वजह कांच के सामने सस्ती व टिकाऊ होना भी है लेकिन इससे जुड़े नुकसान के लिए सूचनाएं भी जारी हो रही है वैज्ञानिकों द्वारा, जिसमे निर्देशित कर बताया गया कि प्लास्टिक की चीजों में रखे गए भोज्य पदार्थों से कैंसर और भ्रूण के विकास में बाधा संवत कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
स्पष्ट है कि वर्तमान में जिस कृत्रिम प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है वो अपने उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक सभी अवस्थाओं में पर्यावरण के लिए नुकसान दायक है क्योंकि प्लास्टिक ऐसे पदार्थों से मिलकर बनाया जाता है जो सेकड़ो सालो तक खत्म नही होता। आज जिन प्लास्टिक की थैलियों को हम सिंघल यूज़ के रूप मे उपयोग करते है उन्हे नष्ट होने मे ही 500 से अधिक वर्ष लग जाते है लेकिन हम यह जानते हुए भी लापरवाह बने हुए है जो एक विशाल कचरे के ठेर रुप मे पृथ्वी पर जमा हो रहा है।
कुछ आकड़ो के अनुसार हर साल 30 करोड़ टन से अधिक का प्लास्टिक कचरा पैदा होता है, यह वजन दुनिया की इंसानी आबादी के वजन के बराबर है,सिर्फ हमारे भारत मे ही लगभग 25,940 टन प्‍लास्टिक प्रतिदिन कचरे के रुप मे इकट्टा हो रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार देश के चार बड़े महानगरो से ही इसके अनुपात को खंगाला जिसमे दिल्ली में हर रोज़ 690 टन,चेन्नई में 429 टन,कोलकाता में 426 टन के साथ मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है।
अब ज़रा सोचिए की पूरे भारत मे इस कचरे की स्थिति कितनी भयानक है।आंकड़े बताते हैं कि सभी उत्पादित प्लास्टिक कचरे का सिर्फ नौ फीसदी हिस्‍सा ही रिसाइक्लिंग हो पाता है जिसमे 12 फीसदी को नष्ट कर दिया जाता है जबकि 79 फीसदी बची प्लास्टिक मैदानो में पड़ा रहता है जो नदी-नालों से होता हुआ समुद्र तक पहुच जाता है।
वैज्ञानिकों के विचार में प्लास्टिक का बढ़ता यह कचरा प्रशांत महासागर में प्लास्टिक सूप की शक्ल ले रहा है,2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में प्लास्टिक कचरे के रुप में 5,000 अरब टुकड़े तैर रहे हैं अधिक वक्त बीतने के बाद यह टुकड़े माइक्रो प्लास्टिक में तब्दील हो गए हैं।जीव विज्ञानियों के अनुसार समुद्र तल पर तैरने वाला यह भाग कुल प्लास्टिक का सिर्फ एक फीसदी है,जबकि 99 फीसदी समुद्री जीवों के पेट में है या फिर समुद्र तल में छिपा है।
कुल मिलाकर आजतक प्लास्टिक पर जितने भी अध्ययन व शोध हुए उसमे एक बात स्पष्ट तौर पर निकलकर आयी कि यह पूरी दुनिया के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हुई, पर अब इसपर अकुंश किस तरह लगाया जाए जो पूरे विश्व के लिए चिंतन का विषय भी है जिसमे ज़रूरत है इंसानो को जागरूक करने की,क्योंकि इसके सस्ते और टिकाऊ होने के कारण यह मानवजीवन मे एक ज़बरदस्त उपयोग का हिस्सा बनी हुई हैं।
एलेन मैक्आर्थर फाउंडेशन के एक अनुमान के अनुसार सिंगल यूज प्लास्टिक के निर्माण की लागत और उससे निकलने वाली हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों से सालाना दुनिया को 40 अरब डॉलर की चपत लगती है जो दोतरफा मार की तरह है। 
पृथ्वी पर प्लास्टिक के बढ़ते ज़हर को लेकर विश्व के कई देशों ने जैसे बांग्लादेश,केन्या,ताइवान,अमेरिका,यूके, न्यूज़ीलैण्ड,जि़म्बांबे,कनाडा और फ्रांस ने कठोर कानून बनाकर इसके बहुत से सिंघल यूज़ उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया जो दुनिया के सामने इस चुनौती से निपटने का एक उदाहरण है। यूरोपियन यूनियन ने साल 2021 तक सिंगल यूज प्लास्टिक आइटम जैसे स्ट्रा,फोर्क,चाकू और कॉटन बड्स का उपयोग पूरी तरह बंद करने का लक्ष्य तय किया है।चीन के कॉमर्शियल हब शंघाई ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर साल 2025 तक पूर्ण प्रतिबंध तय करने की सोच रखी है।
अब इस सूची मे भारत नये सदस्य के रूप मे शामिल होने वाला है जिसकी कोई अधिकारिक घोषणा तो नही हुई है लेकिन 2 अक्टूबर को गांधी जंयती के दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिंघल यूज़ उत्पादो के इस्तेमाल को गंभीरता से लेते हुए इसपर रोक लगाने के संकेत दिये थे, हालाकि हमारे देश मे सिक्किम एक ऐसा राज्य भी है जहा प्लास्टिक पर प्रतिबंध है जो सन् 1998 से सिक्किम में सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ जंग शुरू हुई थी और 2016 तक सिक्किम ने इस पर जीत हासिल की और देश के सामने एक प्रेरणा स्रोत बनकर उभरा।
पूरी दुनिया के सामने आज यह प्लास्टिक तेजी से फैल रहे ज़हर के समान है जिसको रोकना आज हमारी ज़िम्मेदारी की तरह है वरना आनी वाली नस्लों को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।किसी भी मुल्क की सरकारे इसपर नियम कानून बनाकर जुर्माना व सजा तो तय कर सकती है लेकिन इसपर पूर्णता अंकुश जागरूकता दिखाकर ही किया जा सकता है इसलिए जहा तक संभव हो प्लास्टिक का कम इस्तेमाल हो खासकर सिंगल यूज़ का जिसे एक बार उपयोग मे लाकर फैका जाता है जैसे पानी की बोतल,पन्निया,कप,स्ट्रा आदि तथा प्लास्टिक की पीईटीई और एचडीपीई प्रकार के सामान चुनिए यह प्लास्टिक आसानी से रिसाइकल हो जाता है।
प्लास्टिक के बैग और पोलिएस्ट्रीन फोम को कम से कम इस्तेमाल करने की कोशिश करें क्योंकि इनका रिसायकल रेट बहुत कम होता है।धीरे धीरे प्लास्टिक के बने उत्पादों को छोड़ने की कोशिश हो साथ ही अपने आसपास भी प्लास्टिक की खपत को लेकर लोगों को जागरूक करे।देश की सरकारे भी इस प्लास्टिक के विकल्प के रुप मे बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक को बढ़ावा दें जो अनेक किस्मों जैसे बायोपोल,बायोडिग्रेडेबल पॉलिएस्टर एकोलेक्स,
एकोजेहआर आदि या फिर बायो प्लास्टिक जिसे शाकाहारी तेल,मक्का स्टार्च,मटर स्टार्च जैसे जैव ईंधन स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है जो कचरे में सूर्य के प्रकाश,पानी,नमी,बैक्टेरिया,एंजायमों,वायु के घर्षण और सड़न कीटों की मदद से 47 से 90 दिनों में खत्म होकर मिट्टी में घुल जाए, लेकिन इसका उत्पादन महंगा पड़ता है जिसके कारण कंपनियां इसे नहीं बनातीं। इसलिए सभी देशो की व्यवस्थित सरकारों को बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के निर्माण और इसके उपयोग को बढ़ावा देना होगा इस उद्योग से जुडी कंपनियों को तमाम प्रकार से मदद व छूट देकर साथ ही प्लास्टिक पर सख्ती के साथ प्रतिबंध लगाकर इसके उपयोग को घटाया जाए वरना हमारे भारत मे ही जिस तरह इसका इस्तेमाल हो रहा है सन् 2022 तक यह खपत सालाना लगभग तीन करोड टन तक पहुच जाएगी जो आज के अनुपात से दोगनी होगी व 94.6 लाख टन कचरे के रुप मे हमारे सामने आयेगी जिसमे से सिर्फ लगभग 38 लाख टन कचरा सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग से होगा।
कौन जानता था कि जो प्लास्टिक हमारे समाने एक वरदान के रूप मे आयी वह मानव जीवन के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी अभिशाप साबित होगी क्योंकि लियो बकलैंड ने इसका जो गुण बताया था कि "यह न जलेगा न पिघलेगा" वही इसका सबसे बड़ा अवगुण भी थाा-(मोहम्मद  उमर)